Friday, February 11, 2011

शाम

छोटी छोटी खुशियों की तालाश में,
धीरे धीरे पिघलती जाती है ज़िन्दगी हर शाम,
कभी नौकरी, कभी अजनबी तो कभी अपने आप की तलाश,
कभी कभी सोचती हूँ तुम्हारे बारे में,
पर शायद धुंधली हो जाती है यादे भी उम्र के साथ,
अब तुम्हारा ना आना भी बुरा नहीं लगता,
ढून्ढ लिया है अब मैंने अकेलेपन में ही आराम!